गुरु से संवाद एक भाव



बैठी हूं गुरुचरनो में
माताजी के आंचल की छांव है
शांतिकुँज का समाधि स्थल
मानो बरसता वहां से मां का प्यार है
भाव रूप से मिलने जाओ तो
लगता है, गुरुदेव करते इंतजार है
ना जाने कितना अन्नत उनको हमसे प्यार है

बोलने के लिए कुछ नही है गुरुवर
बस आपका मां का आंचल ही
मानो जीवन की पतवार है
गोद मे सिर रखकर मिलता अन्नत आनंद
मानो यही परमानंद का द्वार है

हृदय के भाव बिना बोले पढ़ लेते हो आप
आपका स्नेह दुलार अपरम्पार है
आपके साथ से ही जीवन है प्रभु
आपके मार्गदर्शन की गुहार है

जानती हूं अभी अन्नत कमियां है मुझमें
लेकिन प्रेम को आपके, आपका बच्चा कमियों सहित स्वीकार है
ना जाने कैसा आपका निश्चल ये प्यार है

वर्ष बीत गए, रोते बिलखते
हर बार कहते है, हां पक्का अब हम करते
लेकिन फिर भी कितनी बार हुई अपने ही कमी के कारण, संकल्प की हार है

लेकिन आपने गिरने नही दिया कहीं भी
हर बार प्रेम से उठाया, दूरदर्शी हमे बनाया
बड़े प्रेम से समझाया, यात्रा ये अन्नत है
अन्नत जन्म का हमारा प्यार है
प्रयास तुम करते रहो सच्चे दिल से
निश्चित ही एक दिन मिलेगा तुमको सवेरा, यही तुम्हारे लिए हमारा आशीर्वाद और प्यार है

फल के लिए नही करो कोई कार्य
बस लक्ष्य की ओर बढ़ते चलो
इस पल मे पूर्ण प्रयास करते चलो
आगे तो होगा वही जो तुम्हारे गुरु को तुम्हारे लिए स्वीकार है

हारे हो तुम ये सोचना मत कभी
हर बार हुआ है सुधार
देखो तो जरा पीछे मुड़कर एक बार
जो कह दिया तुमने हार गए तुम
तो होगी तुम्हारे गुरु को पीड़ा अपरंपार
क्योंकि तुम्हारे हर संकल्प का आधार है हमारा प्यार

तुम्हारा तुममें कुछ है ही कहां
अगर है कुछ बाकी तो बता दो अभी
करो समर्पित अभी के अभी
तुम सभी हमारे नादान बच्चे
थोड़े खट्टे थोड़े सच्चे
लेकिन अब जो आ गए तुम हमारे द्वार
तो कैसे ना करे हम तुमसे प्यार
जैसे भी तो तुम, हो हमे स्वीकार

प्रेम आपका बना देता है दीवाना
लेकिन गुरुवर कैसे बयां करूं अपना फसाना
बड़ी पीड़ा होती है अंतकरण में
जब बीतना है दिन, यूहीं मिथ्या आचरण में
लगता है आपको धोखा दे रहे है
कैसे हम यूं आपकी पीड़ा अनुभव करके भी सो रहे है

कब बन पाएंगे आपके अच्छे बच्चे
अभी तो है हम बहुत ही कच्चे
बहुत कुछ सुधारा है आपने
ना जाने कितना सवांरा है आपने
आप ना होते तो जाने कैसा होता जीवन
आपके बिना तो होता एक अधूरपन
जितना हुआ है सुधार,कृपा है आपकी
आगे भी प्रभु अब रजा है आपकी
बस इतनी विनती सुनलो भगवन
करे मन अब केवल तुम्हारा चिंतन
हर भाव, हर विचार हो तुम
हर कर्म का आधार हो तुम

निश्चित ही कभी तो सुधरेंगे
महाकाल के बच्चे है
कभी तो महकाल के रंग में
महाकाल की कृपा से स्वयं को रंगेगे
प्रयास से तो अब पीछे नहीं हटेंगे
गलती हो भी जाए अगर
तो कठिन तप प्रायश्चित स्वरूप करेंगे
लेकिन गुरुदेव अब तो बिगुल बन तुम्हारा जोर से बजेंगे
स्वर इतना प्रेमपूर्ण होगा
के अनेकों के अंतर्मन चहक उठेंगे

अब आओं फूंक मारो ऐसी
के हृदय में हुंकार उठ जाए
महाकाल की युगप्रत्यवर्तन जैसी
पता भी न चले की कब उठ चले
और पता जो चले
तो उसी क्षण तुम्हारे चरणों तले मिथ्या अहम गले

जाने क्या क्या लिखवाते हो गुरुवर
अंतर्मन छू जाते हो गुरुवर
पल में आते, पल में छुप जाते
तुम्हारी आंख मिचौली हम समझ भी ना पाते
काव्य को पढ़ते तो मुस्कुराते
लेकिन कई बार तो गहराई समझ भी ना पाते
लिखवाया हुआ सब तुम्हारा
तुम्हारे चरणों मे चढ़ाते
बस इसी को कृपा मानकर आगे एक कदम बढ़ाते
लेकिन वापस अंतकरण में
पीड़ा वही अनुभव कर पाते
के अभी तक तुम्हारे अच्छे बच्चे नही बन पाते

चलो ठीक है अब जैसे भी है
तुम्ही सम्हालो कैसे भी है
अच्छा बनकर ही क्या होगा
मिथ्या अहम का आकार होगा
जो स्वयं को अच्छा, बुरा माने हम
तो हुए कहां अभी पूर्ण समर्पित
अभी तो है में विकार वहां

तो इससे अच्छा है, चलते चलते है
तुम्हारी गोद में सिर रखकर
तुम्हारे पांव भी पड़ते है
गुरुचरण ही सर्वस्व है
बस यही एक सत्य हृदय मे धारण करते है
तुम्हारे कहे अनुसार
तुम्हारी दी हुई शिक्षाओं के लिए जीते और मरते है
सुधर गए तो ठीक, नही भी सुधरे तो भी
हम तो जन्म जन्म से तेरे बच्चे है
दिल के तेरी कृपा से एकदम सच्चे है
बस अब इससे ज्यादा और क्या
खिलखिलाते हुए हम तो हम बस मस्ती करते है
तेरे प्रेम संग जीते, तेरे प्रेम संग मरते है
तेरी कृपा से गुरुवर अब सब तुझे समर्पित करते है
तेरे प्रेम की गहराई मे अब उतरते चलते है......
अन्नत है प्रेम तेरा.....
इसलिए इस भाव काव्य को भी अब..........अन्नत को समर्पित करते है

गुरुदेव मां से संवाद, एक भाव
लाडली श्रीप्रिया
26 Aug 2022
12 AM

Ela Agarwal
7588276908
Font size:
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Written on August 26, 2022

Submitted by ela.shreepriya on August 26, 2022

Modified on March 05, 2023

4:08 min read
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Quick analysis:

Scheme XX XX
Characters 9,684
Words 827
Stanzas 18
Stanza Lengths 7, 5, 4, 3, 3, 6, 4, 6, 8, 6, 12, 10, 6, 12, 7, 17, 4, 2

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    "गुरु से संवाद एक भाव" Poetry.com. STANDS4 LLC, 2024. Web. 27 Apr. 2024. <https://www.poetry.com/poem/137151/गुरु-से-संवाद-एक-भाव>.

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