Kalki Avtar
भूल भटके कुछ लिख दु
तो माफ करना सभी
गीता को हाथ लगाया था
सिर्फ ज्ञान लेने के लिए कभी
ज्ञान ले तो लिया
पर उड़ गए मेरे होश
बंद करी थोड़ी पाढ़ के
तो अजीब लगने लगा तभी
आगे जो लिखने जा रहा हू
गोर से पढ़ना सभी
ना मैं श्री तुलसी दास
ना मैं कोई शायर या कवि
सभी के सपने पूरे होंगे
आशी भी कुछ बन जाएगा कभी
यह दुनिया बदल जाएगी कल को
जो पढ़ रहे है इसको
हम मर जायेंगे सभी
कभी होंगे
बड़े बड़े कारखाने
बड़े बड़े लोग
हवा मे उड़ती हुई गाड़ियां
लोगों के बड़े बड़े शौक
पर
वो शक्ति जिसने भेजा हमे यहाँ
उसपे लोगो का भरोसा उठने लगेगा
यह कलयुग का दानव
इंसानियत खत्म करने लगेगा
अरे तब लेगा वो कल्कि अवतार
क्योंकि हर दानव के लिए
विष्णु को जन्म लेना पड़ता है।
अरे मारोगे तुम सब के सब
क्योंकि गेहू के साथ
घुन को भी पीसना पड़ता है।
अरे बुला ले तू बड़े बड़े नेताओं को
पाप रुकने नहीं है।
और
यह गीता की बाते
तू यू ही बदल दे
अरे औ इंसान
इतनी तेरी औकात नहीं है।
About this poem
All this is written by reading Bhagwangeeta.
Font size:
Written on August 02, 2022
Submitted by aashiratra on August 18, 2022
Modified on March 05, 2023
- 1:11 min read
- 1 View
Quick analysis:
Scheme | |
---|---|
Characters | 2,167 |
Words | 239 |
Stanzas | 16 |
Stanza Lengths | 4, 2, 2, 2, 4, 3, 4, 4, 1, 2, 3, 1, 1, 2, 1, 1 |
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Style:MLAChicagoAPA
"Kalki Avtar" Poetry.com. STANDS4 LLC, 2024. Web. 14 Sep. 2024. <https://www.poetry.com/poem/136132/kalki-avtar>.
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