Analysis of जिंदग
सर्दियों की वो गुलाबी शाम
फिर धीरे धीरे आसमां में चांद तारों का
दिखना
और इसी पल का इंतजार हमें रोज
जब हल्का अंधेरा बढ़ेगा
तुम अलाव के पास बैठोगे
और
मैं तुम्हें घण्टों चुपके चुपके देखूंगी
तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकते
कि उस पर का हर रोज़ कितनी शिद्दत से
इंतजार रहता मुझे
कितने लम्हे इन ख़्वाबों ख्यालों में बीत जाते
वो वक्त भी आता
तुम अलाव के सामने बैठे रहते
और मैं चोरी चोरी तुम्हें तब तक देखती रहती
जब तक तुम वहां बैठे रहते
काश
कभी तो तुम मुझे समझ पाते
अपना समझते
हमसे बातें करतें।
लेकिन शायद तुम अब उस अलाव की कुर्सी से
बहुत आगे बढ़ गये हो
अब मुझमें भी हजारों कमियां आ गई
अब तो अल्फाज ही नहीं मिलते
कि तुमसे कुछ कह सकूं
रोकने का हक कभी दिया नहीं
और बुला भी लूं तो
बुलाने पर आने वाले ज्यादा देर नहीं ठहरते-
चंद लम्हात के वास्ते ही सही
मुस्कुरा के मिली थी मुझे जिंदगी
फिर कभी नहीं मिली
अब था उम्र बीत जायेगा उन्हीं लम्हात के सहारे
पर यकीन मानो तुम कहीं भी रहो
मेरे लबों पे तुम्हारे लिए बस दुआ ही रहेगी
भले ही तुम मुझे कितने कलंक लगा दो
लेकिन मैं तो उन्हीं बीते लम्हों में ही जीऊंगी
मेरे होने से अहसास नहीं हो रहा
लेकिन जब मैं नहीं रहूंगी
तो तुम्हें जरुर याद आएगी वो पागल लड़की
जो पोस्ट तक तुम्हारा समझ जाती थी
हां ये हक मत छीनना
मेरी पहचान। बदलने को अब न बोलना
मोहब्बत न दे सके एक अक्षर ही दे दो
मेरी जिंदगी कट जाएगी।
Scheme | |
---|---|
Poetic Form | Palindrome |
Metre | 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 |
Characters | 3,128 |
Words | 266 |
Sentences | 1 |
Stanzas | 1 |
Stanza Lengths | 44 |
Lines Amount | 44 |
Letters per line (avg) | 0 |
Words per line (avg) | 6 |
Letters per stanza (avg) | 0 |
Words per stanza (avg) | 261 |
About this poem
बीते लम्हों की यादें लेकर आई हूं । जिन्हें कभी जी ने सकी
Font size:
Written on March 12, 1996
Submitted by drarpitasingh8174829199 on May 31, 2022
Modified on March 05, 2023
- 1:19 min read
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Style:MLAChicagoAPA
"जिंदग" Poetry.com. STANDS4 LLC, 2024. Web. 8 Jun 2024. <https://www.poetry.com/poem-analysis/128436/%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%97>.
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