Mahabharata



                 महाभारत
                ********

गीता में उल्लेख है जिसका
धर्म व नीति का पाठ है जो
अधर्म व कूटनीति के विरुद्ध रचा एक युद्ध
महाभारत है वो ।।

धर्मी पांडवों और अधर्मी कौरवों के बीच
छिड़ा एक संग्राम था
दुष्ट कौरवों ने भेजा पांडवों को एक ग्रह , मेले में
लाक्षागृह जिसका नाम था ।।

मं�
ा थी उनकी पांडवों को मारने की
पर समय रहते पांडवों ने ठानी लाक्षागृह से
बाहर निकल जाने की
उन्होंने बनाया एक सुरंग पर ज्ञात न था जाना कहां है
सभी ने नि�
्चय किया कि जहां कोई उन्हें पहचाने न  जाना वहां है ।।

बदला अपना वेष उन्होंने , बने क्षत्रिय से ब्राह्मण
रहने लगे अब वहीं पर सभी
माता कुंती संग पांचो पांडव ।।

उधर राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी का हो रहा था स्वयंवर

र्त यह थी जो काटेगा उस मछली की आंख
वही होगा द्रौपदी का वर ।।

कोई ना कर सका �
र्त पूरी ,
अर्जुन ने कर दिखाया और साबित कर दी अपनी बहादुरी
इस तरह हुआ द्रौपदी - अर्जुन का विवाह
जिसकी महानता व तेज का हमारा इतिहास है गवाह ।।

हस्तिनापुर में होने लगी �
ुभ - समाचार सुनते ही तैयारियां
पर दुर्योधन , दु�
ासन को यह बात न भाई
महाराज धृतराष्ट्र ने उन्हें बहुत समझाई
पर उन लोगों को यह बात न भाई ।।

पांडवों ने फिर अपना राज्य बनाया
पहले जिसका नाम खांडवप्रस्थ था
देवराज इंद्र को परास्त कर
नाम रखा उसका इंद्रप्रस्थ था ।।

एक दिवस हुआ या मेल
कौरवों और पांडवों के बीच हुआ चौसर का खेल
सारे दाव हारे युधिष्ठिर फिर खुद की बाजी लगाई
दुर्योधन ने छल कर हराया , खूब उसकी हंसी उड़ाई
अपने भाइयों की भी बाज़ी हारी , लगाई उन्होंने द्रौपदी की बाज़ी
यह सुनते ही दुर्योधन- दु�
ासन हो गए राज़ी ।।

हार गए वह भी बाज़ी , द्रौपदी को सभा में लाने की बात हुई
कौरवों ने किया अपमान उस नारी का
जिससे महाभारत की �
ुरुआत हुई ।।


्री कृष्ण ने लाज बचाया , पांचों पांडवों को समझाया
किसी के मन में नहीं बची थी आस
राज - पाट , धन - वैभव छोड़कर
करना पड़ा तेरह वर्ष का वनवास व एक वर्ष का अज्ञातवास ।।

वनवास की अवधि पूर्ण हो चुकी थी , बचा था तो एक वर्ष का अज्ञातवास
सभी ने अपना वेष बदलके मत्स्य दे�
 को प्रस्थान किए जो था थोड़ा पास ।।

इस प्रकार पांडवों ने बिताया अज्ञातवास
हस्तिनापुर लौटने की मन में हो गई आस ।।

वहां जाते हीं पता चला की युद्ध की हो गई घोषणा
पांडवों को यह ज़रा भी न भाए
बहुत से �
ांतिदूतों को उन्होंने भेजवाए
महात्मा विदुर को यह बात लगी भली
पर दुर्योधन - दु�
ासन के मन में खली ।।

अंत में �
्रीकृष्ण गए दूत बनकर
पर युद्ध की बात टली नहीं किसी भी कीमत पर ।।

यह संग्राम हुआ धर्म - अधर्म के बीच
यहां न कोई ऊंचा न कोई नीच
चला महाभारत का युद्ध अट्ठारह दिन
कौरवों की �
क्ति पड़ने लगी क्षीण ।।

अंत में हुई धर्म की जीत
जो है इस संसार की रीत
युद्ध के प�
्चात् , गांधारी ने �
्री कृष्ण को दिया �
्राप

्री कृष्ण ने गांधारी के मन की व्यथा को लिया भाप
सर्वना�
 हुआ यदुवं�
 का , डूबी सागर में द्वारिका
इस प्रकार हुआ द्वापर युग का अंत
कहते हमारे संत - महंत ।।

जीवन का संपूर्ण सार है गीता का ज्ञान
जिससे होता है सत्य का भान
जिससे मिलता धर्म का ज्ञान
वही है हम सनातनियों का मान - सम्मान ।।

About this poem

This poem is about Indian mythology & greatest epic 'MAHABHARATA' ....

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Written on September 23, 2022

Submitted by jh2812768 on September 23, 2022

Modified on March 05, 2023

3:10 min read
1

Quick analysis:

Scheme
Characters 6,847
Words 634
Stanzas 19
Stanza Lengths 2, 4, 4, 7, 3, 4, 5, 6, 4, 7, 4, 5, 3, 2, 7, 3, 5, 13, 4

Akanksha Jha

Myself Akanksha Jha . I am currently pursuing my studies in 9th standard . I live in Jharkhand , India . more…

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    "Mahabharata" Poetry.com. STANDS4 LLC, 2024. Web. 6 May 2024. <https://www.poetry.com/poem/139727/mahabharata>.

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