� ्री कृष्ण सरस मन भाया है , � ्रृंगार जो उनका छाया है I मंद मंद मन लिए हिलौरे , उनके रस मुस्काया है I विगत कुटिल जो अन्यास है बिगड़ी , तब क्षमादान दिलवाया है I � ्री कृष्ण कुंदन कुमुद यूँ फूले , लगता फिर सावन आया हैI औटक से प्रिय को...
– by prabha goswami
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