Analysis of Thahar Ja Sambhal Ja (Hindi)
Shreya Gupta 1982 (New Delhi)
ठहर जा, संभल जा
ठहर जा! बस ठहर जा
हे बंधू! बस अब तो संभल जा ,
अब छोड़ दे ये मनमानी ,
तेरी कहानी है अजब निराली।
कुछ तेरी ज़रुरत तो मैं मानू ,
पर ये इच्छाओं का पिटारा, कैसा बंधू ?
तू बस चलता रहा, बढ़ता रहा ,
ये न सोचा, तूने पीछे क्या है छोड़ा ?
मैं धरती हूँ , तेरी जननी हूँ।
मैं तप रही हूँ , जल रही हूँ।
कहीं तो बस डूब रही हूँ , कट रही हूँ।
साँस भी न ली जाती अब मुझसे
यह उम्मीद न थी तुम सबसे।
तूने वि�
ाल बम बनाये , जहाज़ बनाये।
पर एक कीटाणु से तुम सब रुक से गए ?
इसे तू मेरा सबक ही समझ ,
जैसे तेरी माँ की प्यारी सी गरज।
अब तो मिला है सुनेहरा मौका
कर ले तू पार अपनी नौका।
संभल कर ले हर एक कदम
सोच के कर अपने करम।
जीवन के इस खेल में
बस बाकी रह गयी है एक रेखा
बंद करो अब यह लड़ाई।
न हिन्दू , न मुस्लिम , न सिख न ईसाई ,
सबकी बस एक ही ज़रुरत ,
रोटी , कपडा, मकान, और कुछ बचत !
ये सूरज , ये हवा और नदी समुद्र का पानी
सब कुछ तो है, तो क्यों ये बर्बादी ?
तेरे किसानों की ये कड़ी मेहनत
धरती पर उग रही है, कर रही बढ़त।
दे�
हमारा होगा सफल
अगर हम खाएं अपना ही उगाया 'फल।
तू सब जगह घूमा, चाँद पर भी कूदा!
क्या भारत जैसा दे�
मिला अनोखा ?
एक बात सुन,और ध्यान से सुन!
मैं एक हूँ , और एक ही हूँ!
नाप नाप कर कदम तू रख।
जंगल, प्राणी की रक्षा , नदी को तू साफ रख।
कूड़े , कचरे को तू अलग अलग कर।
पिछड़े ज़माने की बातें तू याद कर
कैसे रहता एक भोला , आदर्�
प्राणी।
जाकर पूछ उन्ही की ज़बानी
समय बहुत काम है, लक्षय कर अटल
मन की �
क्ति को एकाग्र कर , हो सफल।
योग और निद्रा पर दे ध्यान ,
पुराणों और वेदों का समझ ज्ञान।
यह न पूछेंगे बच्चे , कैसा वि�
्व दिया है आपने ?
ऐसा न हो , इसलिए सब सबक को समझें।
सही करम करो , और सही फल पाओ ,
लालच , घृणा और बैर सब भूल जाओ।
अब बस तुम ही हो, अकेले ही हो।
चलते रहो , संभलते रहो , बढ़ते रहो !
Scheme | |
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Poetic Form | Palindrome |
Metre | 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 1 |
Characters | 3,829 |
Words | 360 |
Sentences | 13 |
Stanzas | 8 |
Stanza Lengths | 7, 7, 9, 6, 7, 6, 9, 9 |
Lines Amount | 60 |
Letters per line (avg) | 0 |
Words per line (avg) | 7 |
Letters per stanza (avg) | 0 |
Words per stanza (avg) | 49 |
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Style:MLAChicagoAPA
"Thahar Ja Sambhal Ja (Hindi)" Poetry.com. STANDS4 LLC, 2024. Web. 16 May 2024. <https://www.poetry.com/poem-analysis/98777/thahar-ja-sambhal-ja-%28hindi%29>.
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