AuthorAsifKhan's Poems

Here's the list of poems submitted by AuthorAsifKhan  —  There are currently 9 poems total — keep up the great work!

Ye Sochte Hue Chalna Padh Raha Hai Dagar Main

ये सोचते हुए चलना पड़ रहा है डगर में
जो साथ है वो कल होगा या नही सफर...

by Muhammad Asif Ali

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saliqe se hawaon mein jo KHushbu ghol sakte hain

सलीक़े से हवाओं में जो ख़ुशबू घोल सकते हैं
अभी कुछ लोग बाक़ी हैं जो उर्दू बोल सकते...

by Muhammad Asif Ali

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Agar Hai Pyaar Mujhse To Bataana Bhi Jaroori Hai

अगर है प्यार मुझसे तो बताना भी ज़रूरी है
दिया है हुस्न मौला ने दिखाना भी ज़रूरी है

इशारा तो करो कभी मुझको अपनी निगाहों से
अगर है इश्क़ मुझसे तो जताना भी ज़रूरी है

अगर कर ले सभी ये काम झगड़ा हो नहीं सकता
ख़ता कोई नजर आए छुपाना भी ज़रूरी है

...

by Muhammad Asif Ali

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Khwaab Ko Saath Milkar Sajaane Lage

ख़्वाब को साथ मिलकर सजाने लगे
घर कहीं इस तरह हम बसाने लगे
कर दिया है ख़फ़ा इस तरह से हमें
मान हम थे गए फिर मनाने लगे

~ मुहम्मद आसिफ...

by Muhammad Asif Ali

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अपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं

अपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं
आओ मुहब्बत को एक बार संभल कर देखते हैं

चाँद तारे फूल शबनम सब रखते हैं एक तरफ
महबूब-ए-नज़र पे इस बार मर कर देखते हैं

जिस्म की भूख तो रोज कई घर उजाड़ देती है
हम रूह-ओ-रवाँ को अपनी जान कर के देखते हैं

छोड़...

by Muhammad Asif Ali

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भूल गए हम लहू बहाने वालों को

किसी ने घर छोड़ा किसी ने नौकरी छोड़ दी
इंसाफ़ के लिए लड़कर कितनों ने कमर तोड़ ली

वो बता रहे हैं जिसे भीख में मिली आज़ादी
उस भीख़ ने हमसे हमारी गुलामी छीन ली

नफरत करो मगर नफरत करने वालों से
उनको सजा क्या मिले जिन्होंने माफ़ी ही मांग ली

नंगे हैं...

by Muhammad Asif Ali

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मुझे आज़ाद ज़मीं के पन्नों को पढ़ना हैं

मुझे आज़ाद ज़मीं के पन्नों को पढ़ना हैं
मुझे भी दीदार-ए-संविधान करना है

ये नफ़रत की राजनीती अब देखी नहीं जाती
मुझे भी राजनीती के कुछ हिस्सों को बदलना है

आओ जमकर कहें बुरा जो जितना बुरा है
क्यों हमें भी नफ़रत की आग में जलना है

जिनके बहे लहू...

by Muhammad Asif Ali

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added 2 years ago
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चराग़ तो सभी जल रहे हैं

नज़्म लिखू मगर किस पर
चराग़ तो सभी जल रहे हैं
चैन से गुज़र रही है ज़िन्दगी
ख़्वाब भी अच्छे पल रहे हैं
नज़्म लिखूं मगर किस पर
चराग़ तो सभी जल रहे हैं

दुनिया में कोई गम नहीं
हम भी खु�
ियों में ढल रहे हैं
नज़्म लिखूं मगर किस पर
चराग़ तो सभी जल रहे...

by Muhammad Asif Ali

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added 2 years ago
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दुनियादारी, अपने और सपने

मतलबी दुनिया से इतना वास्ता रखता हूँ
मैं अपने पैरों तले एक रास्ता रखता हूँ
मैं जिस दिन भूल जाता हूँ वो याद दिला देती है
ग़रीबी से सहारा लेकर बस इतना भरम रखता हूँ
निकल जाएगा काम तो वो खुद ही छोड़ देगी तुम्हें
यही अंदाज़-ए-वफ़ा मैं जिंदगी वालों से रखता...

by Muhammad Asif Ali

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