Shashikant Nishant Sharma 'साहिल'

गंगा-भारत भूमि की नदी

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जीवन देती आई कई सदी
गंगा-भारत भूमि की नदी
भारत की सभ्यता-संस्कृति
तेरी धरती उगले सोना
अन्न धन से भरे कोना कोना
विकशित हुए कितने गांव शहर
अमृत-सा पवन तेरी जल धारा
किया धरती को हरा-भरा
तू है कितने ममतामयी
सब कहते तुमको ‘गंगा माई'
गंगोत्री पहर से उतारी
गो-मुख में बस १५ इंच गहरी
मन्दाकिनी और अलकनंदा
त्रि धारा में मिलकर
पहाड़ों से चलकर
आती है मैदानों में
शांत शीतल बनकर बहती
कितनी नदियाँ तुझमे मिलती
पिता हिमालय की पुत्रियां
जग वाले सब करे तेरी स्तुतियाँ
तेरे कर-कमलों में कितने तीर्थ बने
हरिद्वार औरी कितने धाम बने
तेरी ही गोद में आर्यावर्त फुले-फले
अंतकाल में तेरा अंश सब तुझने ही मिले

Shashikant Nishant Sharma

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